कोरोना का कहर मजलूमों की आह तो नहीं
कोरोना का कहर कहीं मजलूमों पर अत्याचार की वजह तो नहीं

कोरोना के कहर से सारी दुनिया त्राहि त्राहि कर रही है। चाहे वह आम इंसान हो या फिर सबसे ज्यादा ताकतवर होने का दावा करने वाले हुक्मरान।

इसी बीच मेरी नज़र दो पोस्टो पर गई। एक में हिंदुस्तान के कश्मीर की दास्ताँ है। कश्मीर की ख्वातीन अपने गम और हुकूमतों के जुल्म पर दुआ करती है। तो दुसरे में सीरिया का एक बच्चा अपने ऊपर हुए जुल्म की शिकायत भगवान् से करने को कहता है। जिसे हम उसी तरह पेश कर रहे है। पहली पोस्ट किसी मीडिया पर्सन अरविन्द मिश्रा की है। जो कश्मीर गए थे इसी बीच उन्हें अपने एक कश्मीरी दोस्त जो मीडिया का छात्र था।


क्या नफीसा की दुआ क़ुबूल हुई है?
यूरोपियन युनियन देशों के प्रतिनिधियों के कश्मीर दौरे पर मैं उन कुछ पत्रकारों में से एक था जिन्हें वहाँ जाने और कवरेज की अनुमति मिली थी।


तब मुझे मेरा एक सहपाठी दोस्त बिलाल अहमद डार जो मास कम्युनिकेशन पी।जी।के समय का साथी है, उससे मिलने उसके घर जाने की केवल पांच मिनट के लिये अनुमति मिल गई थी। बिलाल के घर से वापसी के वक़्त गली के नुक्कड़ पर एक घर की खिड़की में से एक महिला की आवाज़ आई।


"अरविंद भाई आप बिलाल के दोस्त हो न, दिल्ली वाले। बिलाल आपकी बहुत तारीफ़ करता है, कहता है, अरविंद बहुत समझदार इंसान है, इंसानों का दर्द समझता है।"


मैं 'नफीसा उमर' हूँ, बिलाल की फूफी की लड़की हूं।


वक़्त की कमी को समझते हुए उसने जल्दी-जल्दी मुझसे जो बातें कहीं थीं उसकी बातें सुनकर मैं कई दिन सो न सका था और वो बातें आज आपको बताना ज़रूरी समझता हूँ जो नफीसा ने कहा-


"किसी जगह लगातार सात महीने से कर्फ्यू हो, घर से निकलना तो दूर झाँकना भी मुश्किल हो, चप्पे-चप्पे पर आठ-नौ लाख आर्मी तैनात हो, इंटरनेट बंद हो, मोबाइल बंद हो, लैंड लाईन फोन बंद हो, घरों से बच्चों, जवानों और बूढ़ों सहित हज़ारो बेक़ुसूरों की गिरफ्तारियां हुई हों। सारे बड़े-छोटे लीडर जेल में हों, स्कूल कालेज दफ्तर सब बंद हों, कैसे ज़िन्दा रहेंगे लोग ? उनके खाने पीने का क्या होगा? बीमारों का क्या होगा ?
कोई सोचने वाला नही हो। आधी से ज्यादा आबादी डिप्रेशन और ज़हनी (मानसिक) बीमारियों की शिकार हो चुकी हों, बच्चे खौफज़दा (आतंकित) हों, मुस्तक़बिल (भविष्य) अंधेरे में हो, ज़ुल्मों सितम (अत्याचार) की इंतेहा (चरम) हो और रोशनी की कोई किरन न हो, कोई सुध लेने वाला न हो। “पूरी दुनियाँ खामोश तमाशा देख रही हो।“
(नफीसा रोते हुए बोलती रही)
"हमने सब सह लिया, खूब सह रहे हैं। लेकिन उस वक़्त दिल रोता है तड़पता है जब यह सुनाई पड़ता है कि वहाँ कुछ लोग कहते हैं कि "अच्छा हुआ, इनके साथ यही होना चाहिये।"


"पर मैनें उन लोगों के लिये या किसी के लिये भी कभी बददुआ नहीं की, किसी का बुरा नही चाहा बस एक "दुआ" की है ताकि सभी लोगों को और पूरी दुनियाँ को हमारा कुछ तो एहसास हो।"


"अरविंद भाई आप देखना मेरी दुआ बहुत जल्दी क़ुबूल होगी"।


जब मैने पूछा "क्या दुआ की बहन आपने ?" तो नफीसा ने फूट फूट कर रोते और चीखते हुए मुझसे जो कहा मेरे कानों में गूंजता रहता था आज आँखों से दिख भी रहा है। शब्द-ब-शब्द वही लिख रहा हूँ, उसका दर्द महसूस करने की कोशिश कीजियेगा।


"ऐ अल्लाह जो हम पर गुज़रती है वो किसी पर न गुज़रे बस मौला तू कुछ ऐसा कर देना, इतना कर देना कि पूरी दुनियाँ कुछ दिनों के लिये अपने घरों में क़ैद होकर रहने को मजबूर हो जाये सब कुछ बंद हो जाये रुक जाये। शायद दुनिया को यह एहसास हो सके की हम कैसे जी रहे हैं।"


आज हम सब अपने अपने घरों में बंद हैं। मेरे कानों में नफीसा के वो शब्द गूंज रहे हैं-


“अरविंद भाई आप देखना मेरी दुआ बहुत जल्दी क़ुबूल होगी।“
दूसरी पोस्ट एक ऐसे बच्चे की दास्तां है जो ताकतवर लोगों की सनक का शिकार हो गया। जिंदगी और मौत के बीच जंग में उसकी सांसों की डोर कट गई। लेकिन उसने जो कुछ कहा वो बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर देती है।
मामला सीरिया का है जहां विद्रोहियों के साथ वहां की सरकार लड़ाई लड़ रही है। लड़ाई ताकत की है। लेकिन शिकार आम लोग हो रहे हैं। सीरिया में बम हमले में एक तीन साल का बच्चा गंभीर रूप से घायल हो गया। उस बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल के बेड पर मौत के खिलाफ संघर्ष कर रहे बच्चे ने कहा कि वो सबकी शिकायत करेगा, वो भगवान को सबकुछ बताएगा। 
uprootedpalestinians।wordpress।com ब्लॉग पर रिचर्ड एडमंडसन ने बच्चे की पूरी कहानी को बयां किया है और उसकी तस्वीर भी लगाई है। बम हमले में बच्चा बुरी तरह घायल हो गया था और उसे अंदरूनी ब्लीडिंग हुई थी। दर्द से कराहते हुए बच्चे ने कहा कि वो अपनी आत्मा भगवान को सौंप देगा। यह कहते हुए उसकी सांसों की डोर कट गई और उसका पार्थिव शरीर बेड पर निढाल हो गया और वो अनंत यात्रा पर निकल गया।


इसके अतिरिक्त हम कुछ घटनाओं को और जोड़ रहे है। पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में पुलिस हिरासत में पीट पीटकर मारे गए सुरक्षा गार्ड प्रदीप तोमर के 10 वर्षीय बच्चे की जुबानी पुलिस बर्बरता की कहानी।


बच्चे ने कहा, '10 से अधिक पुलिसकर्मी मेरे पिता की पिटाई कर रहे थे। उन्होंने उन्हें बिजली के झटके दिए और पेंचकस भी घोंपा। पुलिसकर्मी शराब भी पी रहे थे और उन्होंने दर्द में कराह रहे मेरे पिता को पानी देने से मना कर दिया। मुझे चिप्स का एक पैकेट दिया गया और बंदूक की नोक पर चुप रहने को कहा गया।'


उत्तर प्रदेश के जिले हापुड़ के पुलिस स्टेशन में 13 अक्टूबर को 35 वर्षीय गार्ड प्रदीप तोमर को बेरहमी से पीटा गया जिसके बाद उनकी मौत हो गई। इस मामले में पिलखुआ पुलिस स्टेशन के एसएचओ सहित तीन पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया था। अपने पिता की पिटाई और जुल्म को जो बच्चा रात भर देखेगा उसके दिल से क्या बद्दुआ न निकलेगी।


इसी तरह से देश में दलितों, आदिवासियों पर भी अत्याचार की दास्तानों से समाचार पत्र भरे पड़े है। कही माव लिंचिंग में बेक़सूर को तडपा तडपा कर मार दिया जाता है तो कहीं गुलामी की मानसिकता के चलते कमजोरों पर जुल्म ढहाए जाते है। सिर्फ इतना ही नहीं अत्याचारी इतने बेख़ौफ़ होते है कि सार्वजनिक अत्याचार करने के बाद उसका वीडिओ बनाते है फिर उसको वायरल करते है। इसके बाद सरकारों के प्रतिनिधि अत्याचारियों पर कार्यवाही तो दूर उनका सम्मान करते है। जिनके मासूम बच्चे सरकार की लापरवाही और आक्सीजन की कमी से तड़प तड़प कर मौत के काल में समां जाते है उनके दिलों से हाय तो निकलेगी। सोने पे सुहागा तब हो जाता है जब पक्षपाती मीडिया उनके पक्ष में डीबेट शुरू कर देती है। यह तो बानगी मात्र है। पूरी दुनिया में वर्चस्व और नफरत का बाज़ार गर्म है।


कहा जाता है कि बच्चे भगवान के रूप होते हैं। वो जो देखते हैं उसे महसूस करते हैं और बिना किसी पूर्वाग्रह के अपनी बात रखते हैं। एक तरह से वो सच्चाई को बयां करते हैं। ये भी कहा जाता है कि जब कहीं लड़ाई या लड़ाई वाले हालात का निर्माण होता है तो सबसे ज्यादा बच्चे और महिलाएं प्रभावित होती हैं। जिस घटना का जिक्र हम करने जा रहे हैं वो किसी फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं है बल्कि हकीकत है। एक ऐसे बच्चे की दास्तां है जो किसी को भी रोने के लिए मजबूर कर देगी और सोचने के लिए विवश कि क्या हम सत्ता हासिल करने के लिए मासूमों को बलि चढ़ा सकते हैं।


खैर रात गई बात गई के अंदाज में कोरोना से सबक लेना चाहिए। कोरोना के वजह से आज पूरी दुनिया साथ मिलकर इसे मिटाने के लिए कोशिश कर रहे हैं यानी एकता में ही ताकत है। यह बात हमे आज पता चल रही है।


बड़े से बड़े पूंजीपति भी आज कोरोना से बचने के लिए अपने अपने घरों में बंद पड़े हैं। इससे यह साबित होता है कि पैसा और स्टेटस बुरे वक्त में आपकी कोई मदद नही कर सकता।


प्रकृति की इज्जत कीजिये। बेवजह गंदगी न करें और ना ही प्रकृति के किसी अनमोल चीज को नष्ट करें। परिवार के लिए समय निकाले क्योंकि जीवन में यही साथ दे सकते हैं और आपके लाइफ का यही असली सुख है।


बुरे वक्त में आपका देश ही आपके काम आएगा इसलिए अपने देश की इज्जत कीजिये और अपने देशवाशियों की जरूरत पड़ने पर मदद कीजिये।


मेरा धर्म तेरा धर्म अच्छे बुरे की लड़ाई लड़ने से बेहतर है मानवतावादी नीति अपनाई जाये। मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारों के भव्य निर्माण और दान करने से बेहतर है कि स्कूल और अस्पतालों का निर्माण करे। क्योंकि संकट के समय धार्मिक स्थल बंद है और अस्पताल चालू है।


इतने संकट में भी लोग महामारी में धर्म, क्षेत्र ढूंढते दिख रहे है। किसी प्रदेश के लोगो की शक्ल अगर चाइना के लोगों से मिलती है तो उस पर जुल्म शुरू। या किसी धर्म विशेष पर हमला करने से इनकी राजनीति चमकती है तो भाढ़ में जाए प्राकृतिक आपदा हम मनमर्जी करेंगे।


इसलिए यह समझिए कि दर्द की कोई ज़ात नहीं होती। ग़म का कोई इलाका नहीं होता। जुल्म की कोई हद नही होती और दरिंदगी का कोई मजहब नहीं होता। यह कहानियाँ कुछ ऐसे ही लोगों की है।